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अधूरी कहानी!
ढल गया है हुस्न उसका,अब न वो जवानी है,
आंसुओं को गर समझो,नहीं तो वो पानी है।
सपने जवां मेरे, वो मौसम जवां कितना,
महके बदन उसका, जैसे रातरानी है।
वो नहीं लिबाशों से, गेसुओं से थकती है,
छोटे आज बालों की, दुनिया दीवानी है।
सुहाने दिन न लौटेंगे, वो स्कूल-कॉलेज के,
वो अलग फ़साना था, ये अलग कहानी है।
रातें सुलगती हैं, औ दिन भी दहकता है,
उठता धुआँ देखो, आग की निशानी है।
पिला करके नैनों से, तलब क्यों बढ़ाती है,
भौरें कहाँ जाएँ, ये तो मनमानी है।
मुस्काते होंठों पे हँसी का जो प्याला है,
दो पल की जीवन से वही हँसी चुरानी है।
उसकी अदाओं पर फ़िदा ये जमाना है,
सीलबंद मदिरा वो, वर्षों पुरानी है।
कितनी शाम गुजरी है, गम -ए - तन्हाई में,
आकर के ख्वाबों में करती छेड़खानी है।
इस हसीन दुनिया का, तज़ुर्बा हमारा है,
हक़ीक़त को भी समझो,दुनिया ये फानी है।
उन सुर्ख होंठों को अब ना छू सकेंगे हम,
खिज़ा का ये मौसम भी कितना तूफानी है।
जी भर के फिर देखूँ, वो चाँद कब निकले,
अंगूरी बदन उसका, वो भी खानदानी है।
लौटेगी जिस दिन वो,घर ही सज जाएगा,
दिल दुखाने ही आओ, अधूरी ये कहानी है।
रामकेश एम.यादव(कवि, साहित्यकार)मुंबई,
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